संस्कृतविश्वम्
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अनेक शास्त्रं बहु वेदितव्यम् अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्ना: यत् सारभूतं तदुपासितव्यं हंसो यथा क्षीरमिवाम्भुमध्यात् ।


अनेक शास्त्रं बहु वेदितव्यम् अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्ना: ।
यत् सारभूतं तदुपासितव्यं हंसो यथा क्षीरमिवाम्भुमध्यात् ।।
पढने के लिए बहुत शास्त्र हैं और ज्ञान अपरिमित है| अपने पास समय की कमी है और बाधाएं बहुत है। जैसे हंस पानी में से दूध निकाल लेता है उसी तरह उन शास्त्रों का सार समझ लेना चाहिए।


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पाणिनिसंस्कृतविश्वविद्यालयः

परिचयः

उज्जैन के सांस्कृतिक और पौराणिक महत्व को ध्यान में रखते हुए राज्य शासन ने संस्कृत भाषा और प्राचीन ज्ञान.विज्ञान के अभिवर्धन एवं प्रसार हेतु उज्जैन में संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया। महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय अधिनियम 2006 ;क्रमांक 15 सन् 2008द्ध के तहत 15 अगस्त 2008 से ष्महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालयए उज्जैनष् की स्थापना की गई तथा 17 अगस्त 2008 को राज्य के मुख्यमंत्री माननीय श्री शिवराज सिंह चैहान की अध्यक्षता में तत्कालीन महामहिम राज्यपाल एवं कुलाधिपति डॉ. बलराम जाखड़ द्वारा इसका विधिवत् शुभारंभ किया गया। यह कार्यक्रम बिड़ला शोध संस्थानए देवास रोड़ए उज्जैन में सम्पन्न हुआ था।

जिला प्रशासन के सहयोग से देवास रोड, उज्जैन स्थित बिड़ला शोध संस्थान परिसर में बिड़ला ट्रस्ट की सहमति से विश्वविद्यालय का कार्यालय दिनांक 17 अगस्त 2008 से प्रारंभ किया गया।

विश्वविद्यालय का कार्यालय क्षिप्रांजली न्यास की भूमि में स्थित बिरला शोध संस्थान के भवन में विधिवत् संचालित हो रहा है। भूमि का कुल क्षेत्रफल 1,25,420 वर्गफीट के लगभग है तथा भवन का क्षेत्रफल लगभग 10,200 वर्गफीट है। इसी भवन में कार्यालय के अतिरिक्त पाँच विश्वविद्यालय अध्यापन विभागांे की कक्षायें भी लगायी जा रही हैं। भवन किराये पर है और इसका किराया रूपये 18,939 प्रतिमाह है।

दिनांक 25.3.2010 को मध्यप्रदेश विद्यानसभा द्वारा ‘महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय, उज्जैन’ के अधिनियम में ‘वैदिक’ शब्द को जोड़े जाने के सम्बन्ध में संशोधन का प्रस्ताव पारित किया गया। तदनुसार इस विश्वविद्यालय का नाम ‘महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय’ के स्थान पर ‘महर्षि पाणिनि संस्कृत एवम् वैदिक विश्वविद्यालय’ हुआ।


पाठ्यक्रम्

शास्त्री प्रथम द्वितीय सत्रश्च


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शास्त्री तृतीय चतुर्थ सत्रश्च


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शास्त्री पञ्चं षष्ठ सत्रश्च


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बी. ए. संस्कृतप्राच्यम्


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जालपत्र

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